Concepts

 रैदास का जीवन परिचय : रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म सन् 1388 को बनारस में हुआ था। रैदास कबीर के समकालीन हैं। रैदास की ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। संत कुलभूषण कवि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया। उन्होंने सबको परस्पर मिल- जुलकर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। उनका विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है।रैदास की वाणी, भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उनकी शिक्षाओं का श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। आज भी सन्त रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रैदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हैं।

 रैदास के पद का सार :  संत कवि रैदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग है, जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। उनका सच्चे ज्ञान पर विश्वास था। उन्होंने भक्ति के लिए परम वैराग्य को अनिवार्य माना था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और वह जीवात्मा के रूप में प्रत्येक जीव में मौजूद है।

इसी विचारधारा के अनुसार, उन्होनें अपने प्रथम पद “अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी” में हमें यह शिक्षा दी है कि हमें ईश्वर किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं मिलेंगे या किसी मूर्ति में नहीं मिलेंगे। ईश्वर को प्राप्त करने का एक मात्र उपाय अपने मन के भीतर झाँकना है। कवि ने यहाँ प्रकृति एवं जीवों के विभिन्न रूपों का उपयोग करके यह कहा है कि भक्त और भगवान एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। उनके अनुसार ईश्वर सर्वश्रेष्ठ हैं और हर जन्म में वे ही सर्वश्रेष्ठ रहेंगे।

अपने दूसरे पद “ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।” में रैदास जी ने ईश्वर की महत्ता का वर्णन किया है। उनके अनुसार ईश्वर अमीर-गरीब, छुआ-छूत आदि में विश्वास नहीं करते और वे सभी का उद्धार करते हैं। वे चाहें तो नीच को भी महान बना सकते हैं। ईश्वर ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था और वे  हमारा भी उद्धार करेंगे। इस तरह, उन्होंने हमें उस समय के समाज में व्याप्त जात-पाँत, छुआ-छूत जैसे अंधविश्वासों का त्याग करने की सलाह दी है।

(1) रैदास के पद
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा॥

रैदास के पद प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग-2’ पाठ-7 कविता ‘रैदास के पद’ से ली गई हैं। इस पद के रचियता रैदास जी हैं। इस पद में हमें संत रैदास जी की भक्ति भावना का परिचय मिलता है।

रैदास के पद भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रैदास जी ने अपने भक्ति भाव का वर्णन किया है। उनके अनुसार, जिस तरह प्रकृति में बहुत सारी चीजें एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं, ठीक उसी तरह, भक्त एवं भगवान भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने प्रथम पंक्ति में ही राम नाम का गुणगान किया है। रैदास के पद की इन पंक्तियों में वे बोल रहे हैं कि अगर एक बार राम नाम रटने की लत लग जाए, तो फिर वह कभी छूट नहीं सकती। उनके अनुसार, भक्त एवं भगवान चन्दन की लकड़ी एवं पानी की तरह होते हैं।

जब चन्दन की लकड़ी को पानी में डालकर छोड़ दिया जाता है, तो उसकी सुगंध पानी में फैल जाती है। ठीक उसी प्रकार भगवान भी अपनी सुगंध भक्त के मन में छोड़ जाते हैं। जिसे सूंघकर भक्त सदा प्रभु-भक्ति में लीन रहता है।

आगे वह कहते हैं कि जब वर्षा होने वाली होती है और चारों तरफ आकाश में बादल घिर जाते हैं, तो जंगल में उपस्थित मोर अपने पंख फैलाकर नाचे बिना नहीं रह सकता। ठीक उसी प्रकार, एक भक्त राम नाम लिये बिना नहीं रह सकता। रैदास जी आगे कहते हैं, जैसे दीपक में बाती जलती रहती है, वैसे ही, एक भक्त भी प्रभु की भक्ति में जलकर सदा प्रज्वलित होता रहता है।

कवि के अनुसार अगर ईश्वर मोती हैं, तो भक्त एक धागे के समान है, जिसमें मोतियों को पिरोया जाता है अर्थात दोनों एक- दूसरे के बिना अधूरे हैं और इसीलिए कवि ने एक भक्त से भगवान के मिलन को सोने पे सुहागा कहा है। रैदास के पद की इन पंक्तियों में अपनी भक्ति का वर्णन करते हुए ,रैदास जी स्वयं को एक दास और प्रभु को स्वामी कहते हैं।

रैदास के पद विशेष:-

1. साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।

2.चितवत चंद चकोरा, जाकी जोति में अनुप्रास अलंकार है।

3.अँग-अँग में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

 

(2) रैदास के पद

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥

रैदास के पद प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग-2’ पाठ-7 कविता ‘रैदास के पद’ से ली गई हैं। इस पद के रचियता रैदास जी हैं। कवि ने प्रभु की कृपा एवं महिमा का वर्णन किया है।

रैदास के पद भावार्थ :  रैदास के पद की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि के अनुसार इस संपूर्ण जगत में प्रभु से बड़ा कृपालु और कोई नहीं। वे गरीब एवं दीन- दुखियों को समान भाव से देखने वाले हैं। वे छूत-अछूत में विश्वास नहीं करते हैं और मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई भेदभाव नहीं करते। इसी कारणवश कवि को यह लग रहा है कि अछूत होने के बाद भी उन पर प्रभु ने असीम कृपा की है। प्रभु की इस कृपा की वजह से कवि को अपने माथे पर राजाओं जैसा छत्र महसूस हो रहा है।

रैदास के पद की इन पंक्तियों से पता चल रहा है कि कवि खुद को नीच एवं अभागा मानते थे। उसके बाद भी प्रभु ने उनके ऊपर जो कृपा दिखाई है, कवि उससे फूले नहीं समा रहे हैं। प्रभु अपने भक्तों में भेद-भाव नहीं करते हैं, वे सदैव अपने भक्तों को समान दृष्टि से देखते हैं। वे किसी से नहीं डरते एवं अपने सभी भक्तों पर एक समान कृपा करते हैं। प्रभु के इसी गुण की वजह से नामदेव, कबीर जैसे जुलाहे, सधना जैसे कसाई, सैन जैसे नाइ एवं त्रिलोचन जैसे सामान्य व्यक्तियों को इतनी ख्याति प्राप्त हुई। प्रभु की कृपा से उन्होंने इस संसार-रूपी सागर को पार कर लिया। रैदास के पद की अंतिम पंक्तियों में कवि संतों से कहते हैं कि हरि यानि प्रभु की महिमा अपरम्पार है, वो कुछ भी कर सकते हैं।

रैदास के पद विशेष:-

1. साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।

2. सधना सैनु, मेरा माथै में अनुप्रास अलंकार है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे-पानी, समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए-
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 अब कैसे छूटे राम नाम … ऐसी लाल तुझ बिनु … Q1
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) “रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए-
मोरा, चंद, बाती जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसईआ
उत्तर-
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की निम्नलिखित चीजों से तुलना की गई है-

  1. भगवान की चंदन से और भक्त की पानी से ।
  2. भगवान की घन बन से और भक्त की मोर से।
  3. भगवान की चाँद से और भक्त की चकोर से
  4. भगवान की दीपक से और भक्त की बाती से
  5. भगवान की मोती से और भक्त की धागे से ।
  6. भगवान की सुहागे से और भक्त को सोने से।

(ख) अन्य तुकांत शब्द इस प्रकार हैं

  1. मोरा      –  चकोरा
  2. बाती      –  राती
  3. धागा      –   सुहागा
  4. दासा      –   रैदासा

(ग)

  1. चंदन      –    बास
  2. घन बन   –    मोर
  3. चंद        –    चकोर
  4. मोती      –     धागा
  5. सोना      –     सुहागा
  6. स्वामी     –     दास

(घ) दूसरे पद में कवि ने अपने प्रभु को ‘गरीब निवाजु’ कहा है। इसका अर्थ है-दीन-दुखियों पर दया करने वाला। प्रभु ने रैदास जैसे अछूत माने जाने वाले प्राणी को संत की पदवी प्रदान की। रैदास जन-जन के पूज्य बने। उन्हें महान संतों जैसा सम्मान मिला। रैदास की दृष्टि में यह उनके प्रभु की दीन-दयालुता और अपार कृपा ही है।
(ङ) इसका आशय है-रैदास अछूत माने जाते थे। वे जाति से चमार थे। इसलिए लोग उनके छूने में भी दोष मानते थे। फिर भी प्रभु उन पर द्रवित हो गए। उन्होंने उन्हें महान संत बना दिया।
(च) रैदास ने अपने स्वामी को ‘लाल’, गरीब निवाजु, गुसईआ, गोबिंदु आदि नामों से पुकारा है।
(छ)

     प्रयुक्त रूप           प्रचलित रूप

  1. मोरा                       मोर
  2. चंद                        चाँद
  3. बाती                      बत्ती
  4. जोति                      ज्योति
  5. बरै                         जलै
  6. राती                       रात्रि, रात
  7. छत्रु                        छत्र, छाता
  8. धरै                         धारण करे
  9. छोति                      छूते
  10. तुहीं                        तुम्हीं
  11. गुसईआ                  गोसाईं।

प्रश्न 2.नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जाकी अँग-अँग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर-
(क) भाव यह है कि कवि रैदास अपने प्रभु से अनन्य भक्ति करते हैं। वे अपने आराध्य प्रभु से अपना संबंध विभिन्न रूपों में जोड़कर उनके प्रति अनन्य भक्ति प्रकट करते हैं। रैदास अपने प्रभु को चंदन और खुद को पानी बताकर उनसे घनिष्ठ संबंध जोड़ते हैं। जिस तरह चंदन और पानी से बना लेप अपनी महक बिखेरता है उसी प्रकार प्रभु भक्ति और प्रभु कृपा के कारण रैदास का तन-मन सुगंध से भर उठा है जिसकी महक अंग-अंग को महसूस हो रही है।

(ख) भाव यह है कि रैदास अपने आराध्य प्रभु से अनन्य भक्ति करते हैं। वे अपने प्रभु के दर्शन पाकर प्रसन्न होते हैं। प्रभु-दर्शन से उनकी आँखें तृप्त नहीं होती हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार चकोर पक्षी चंद्रमा को निहारता रहता है। उसी प्रकार वे भी अपने आराध्य का दर्शनकर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।

(ग) भाव यह है कि अपने आराध्य प्रभु से अनन्यभक्ति एवं प्रेम करने वाला कवि अपने प्रभु को दीपक और खुद को उसकी बाती मानता है। जिस प्रकार दीपक और बाती प्रकाश फैलाते हैं उसी प्रकार कवि अपने मन में प्रभु भक्ति की ज्योति जलाए रखना चाहता है।

(घ) प्रभु की दयालुता, उदारता और गरीबों से विशेष प्रेम करने के विषय में कवि बताता है कि हमारे समाज में अस्पृदश्यता के कारण जिन्हें कुछ लोग छूना भी पसंद नहीं करते हैं, उन पर दयालु प्रभु असीम कृपा करता है। प्रभु जैसी कृपा उन पर कोई नहीं करता है। प्रभु कृपा से अछूत समझे जाने वाले लोग भी आदर के पात्र बन जाते हैं।

(ङ) संत रैदास के प्रभु अत्यंत दयालु हैं। समाज के दीन-हीन और गरीब लोगों पर उनका प्रभु विशेष दया दृष्टि रखता है। प्रभु की दया पाकर नीच व्यक्ति भी ऊँचा बन जाता है। ऐसे व्यक्ति को समाज में किसी का डर नहीं रह जाता है। अर्थात् प्रभु की कृपा पाने के बाद नीचा समझा जाने वाला व्यक्ति भी ऊँचा और निर्भय हो जाता है।

प्रश्न 3.
रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
पहले पद का केंद्रीय भाव यह है कि राम नाम की रट अब छूट नहीं सकती। रैदास ने राम नाम को अपने अंग-अंग में समा लिया है। वह उनका अनन्य भक्त बन चुका है।
दूसरे पद का केंद्रीय भाव यह है कि प्रभु दीन दयालु हैं, कृपालु हैं, सर्वसमर्थ हैं तथा निडर हैं। वे अपनी कृपा से नीच को उच्च बना सकते हैं। वे उद्धारकर्ता हैं।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.भक्त कवि कबीर, गुरु नानक, नामदेव और मीराबाई की रचनाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर- छात्र इन कवियों की रचनाओं का संकलन स्वयं करें।

प्रश्न 2. पाठ में आए दोनों पदों को याद कीजिए और कक्षा में गाकर सुनाइए।
उत्तर- छात्र दोनों पदों को स्वयं याद करें और कक्षा में गाकर सुनाएँ।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1. रैदास को किसके नाम की रट लगी है? वह उस आदत को क्यों नहीं छोड़ पा रहे हैं?
उत्तर- रैदास को राम के नाम की रट लगी है। वह इस आदत को इसलिए नहीं छोड़ पा रहे हैं, क्योंकि वे अपने आराध्ये प्रभु के साथ मिलकर उसी तरह एकाकार हो गए हैं; जैसे-चंदन और पानी मिलकर एक-दूसरे के पूरक हो जाते हैं।

प्रश्न 2. जाकी अंग-अंग वास समानी’ में जाकी’ किसके लिए प्रयुक्त है? इससे कवि को क्या अभिप्राय है?
उत्तर- ‘जाकी अंग-अंग वास समानी’ में ‘जाकी’ शब्द चंदन के लिए प्रयुक्त है। इससे कवि का अभिप्राय है जिस प्रकार चंदन में पानी मिलाने पर इसकी महक फैल जाती है, उसी प्रकार प्रभु की भक्ति का आनंद कवि के अंग-अंग में समाया हुआ है।

प्रश्न 3. ‘तुम घन बन हम मोरा’-ऐसी कवि ने क्यों कहा है?
उत्तर-रैदास अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं, जिन्हें अपने आराध्य को देखने से असीम खुशी मिलती है। कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि जिस प्रकार वन में रहने वाला मोर आसमान में घिरे बादलों को देख प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार कवि भी अपने आराध्य को देखकर प्रसन्न होता है।

प्रश्न 4. जैसे चितवत चंद चकोरा’ के माध्यम से रैदास ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर- ‘जैसे चितवत चंद चकोरा’ के माध्यम से रैदास ने यह कहना चाहा है कि जिस प्रकार रात भर चाँद को देखने के बाद भी चकोर के नेत्र अतृप्त रह जाते हैं, उसी प्रकार कवि रैदास के नैन भी निरंतर प्रभु को देखने के बाद भी प्यासे रह जाते हैं।

प्रश्न 5.रैदास द्वारा रचित ‘अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी’ को प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर-रैदास द्वारा रचित ‘अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी’ में अपने आराध्य के नाम की रट की आदत न छोड़ पाने के माध्यम से कवि ने अपनी अटूट एवं अनन्य भक्ति भावना प्रकट की है। इसके अलावा उसने चंदन-पानी, दीपक-बाती आदि अनेक उदाहरणों द्वारा उनका सान्निध्य पाने तथा अपने स्वामी के प्रति दास्य भक्ति की स्वीकारोक्ति की है।

प्रश्न 6. रैदास ने अपने ‘लाल’ की किन-किन विशेषताओं का उत्लेख किया है?
उत्तर- रैदास ने अपने ‘लाल’ की विशेषता बताते हुए उन्हें गरीब नवाजु दीन-दयालु और गरीबों का उद्धारक बताया है। कवि के लाल नीची जातिवालों पर कृपाकर उन्हें ऊँचा स्थान देते हैं तथा अछूत समझे जाने वालों का उद्धार करते हैं।

प्रश्न 7. कवि रैदास ने किन-किन संतों का उल्लेख अपने काव्य में किया है और क्यों?
उत्तर- कवि रैदास ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन का उल्लेख अपने काव्य में किया है। इसके उल्लेख के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि उसके प्रभु गरीबों के उद्धारक हैं। उन्होंने गरीबों और कमज़ोर लोगों पर कृपा करके समाज में ऊँचा स्थान दिलाया है।

प्रश्न 8.कवि ने गरीब निवाजु किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर-कवि ने गरीब निवाजु’ अपने आराध्य प्रभु को कहा है, क्योंकि उन्होंने गरीबों और कमज़ोर समझे जानेवाले और अछूत कहलाने वालों का उद्धार किया है। इससे इन लोगों को समाज में मान-सम्मान और ऊँचा स्थान मिल सकी है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. पठित पद के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि रैदास की उनके प्रभु के साथ अटूट संबंध हैं।
उत्तर- पठित पद से ज्ञात होता है कि रैदास को अपने प्रभु के नाम की रट लग गई है जो अब छुट नहीं सकती है। इसके अलावा कवि ने अपने प्रभु को चंदन, बादल, चाँद, मोती और सोने के समान बताते हुए स्वयं को पानी, मोर, चकोर धाग और सुहागे के समान बताया है। इन रूपों में वह अपने प्रभु के साथ एकाकार हो गया है। इसके साथ कवि रैदास अपने प्रभु को स्वामी मानकर उनकी भक्ति करते हैं। इस तरह उनका अपने प्रभु के साथ अटूट संबंध है।

प्रश्न 2. कवि रैदास ने ‘हरिजीउ’ किसे कहा है? काव्यांश के आधार पर ‘हरिजीउ’ की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-कवि रैदास ने ‘हरिजीउ’ कहकर अपने आराध्य प्रभु को संबोधित किया है। कवि का मानना है कि उनके हरिजीउ के बिना माज के कमजोर समझे जाने को कृपा, स्नेह और प्यार कर ही नहीं सकता है। ऐसी कृपा करने वाला कोई और नहीं हो । सकता। समाज के अछूत समझे जाने वाले, नीच कहलाने वालों को ऊँचा स्थान और मान-सम्मान दिलाने का काम कवि के ‘हरिजीउ’ ही कर सकते हैं। उसके ‘हरजीउ’ की कृपा से सारे कार्य पूरे हो जाते हैं।

प्रश्न 3.रैदास द्वारा रचित दूसरे पद ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ को प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर- कवि रैदास द्वारा रचित इस पद्य में उनके आराध्य की दयालुता और दीन-दुखियों के प्रति विशेष प्रेम का वर्णन है। कवि का प्रभु गरीबों से जैसा प्रेम करता है, वैसा कोई और नहीं। वह गरीबों के माथे पर राजाओं-सा छत्र धराता है तो अछूत समझे जाने वाले वर्ग पर भी कृपा करता है। वह नीच समझे जाने वालों पर कृपा कर ऊँचा बनाता है। उसने अनेक गरीबों का उद्धार कर यह दर्शा दिया है कि उसकी कृपा से सभी कार्य सफल हो जाते हैं।

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